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Thursday, June 2, 2011


GAON KA BETA

INTRODUCTION ABOUT ANNA HAZARE

15 जून 1938 को महाराष्ट्र के अहमद नगर के भिंगर कस्बे में जन्मे अन्ना का बचपन बहुत गरीबी में गुजरा। पिता मजदूर थे। दादा फौज में। दादा की पोस्टिंग भिंगनगर में थी। वैसे अन्ना के पुरखों का गांव अहमद नगर जिले में ही स्थित रालेगन सिद्धि में था। दादा की मौत के सात साल बाद अन्ना का परिवार रालेगन आ गया। अन्ना के छह भाई हैं। परिवार में तंगी का आलम देखकर अन्ना की बुआ उन्हें मुम्बई ले गईं। वहां उन्होंने सातवीं तक पढ़ाई की। परिवार पर कष्टों का बोझ देखकर वह दादर स्टेशन के बाहर एक फूल बेचनेवाले की दुकान में 40 रुपये की पगार में काम करने लगे। इसके बाद उन्होंने फूलों की अपनी दुकान खोल ली और अपने दो भाइयों को भी रालेगन से बुला लिया।
छठे दशक के आसपास वह फौज में शामिल हो गए। उनकी पहली पोस्टिंग बतौर ड्राइवर पंजाब में हुई। यहीं पाकिस्तानी हमले में वह मौत को धता बता कर बचे थे। इसी दौरान नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से उन्होंने विवेकानंद की एक बुकलेट 'कॉल टु दि यूथ फॉर नेशन' खरीदी और उसको पढ़ने के बाद उन्होंने अपनी जिंदगी समाज को समर्पित कर दी। उन्होंने गांधी और विनोबा को भी पढ़ा। 1970 में उन्होंने आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प किया। मुम्बई पोस्टिंग के दौरान वह अपने गांव रालेगन आते-जाते रहे। चट्टान पर बैठकर गांव को सुधारने की बात सोचते रहते।
जम्मू पोस्टिंग के दौरान 15 साल फौज में पूरे होने पर 1975 में उन्होंने वीआरएस ले लिया और गांव में आकर डट गए। उन्होंने गांव की तस्वीर ही बदल दी। उन्होंने अपनी ज़मीन बच्चों के हॉस्टल के लिए दान कर दी। आज उनकी पेंशन का सारा पैसा गांव के विकास में खर्च होता है। वह गांव के मंदिर में रहते हैं और हॉस्टल में रहने वाले बच्चों के लिए बनने वाला खाना ही खाते हैं। आज गांव का हर शख्स आत्मनिर्भर है। आस-पड़ोस के गांवों के लिए भी यहां से चारा, दूध आदि जाता है। गांव में एक तरह का राम राज है। गांव में तो उन्होंने राम राज स्थापित कर दिया है। अब वह अपने दल-बल के साथ देश में रामराज की स्थापना की मुहिम में निकले हैं : भ्रष्टाचार रहित भारत।15 जून 1938 को महाराष्ट्र के अहमद नगर के भिंगर कस्बे में जन्मे अन्ना का बचपन बहुत गरीबी में गुजरा। पिता मजदूर थे। दादा फौज में। दादा की पोस्टिंग भिंगनगर में थी। वैसे अन्ना के पुरखों का गांव अहमद नगर जिले में ही स्थित रालेगन सिद्धि में था। दादा की मौत के सात साल बाद अन्ना का परिवार रालेगन आ गया। अन्ना के छह भाई हैं। परिवार में तंगी का आलम देखकर अन्ना की बुआ उन्हें मुम्बई ले गईं। वहां उन्होंने सातवीं तक पढ़ाई की। परिवार पर कष्टों का बोझ देखकर वह दादर स्टेशन के बाहर एक फूल बेचनेवाले की दुकान में 40 रुपये की पगार में काम करने लगे। इसके बाद उन्होंने फूलों की अपनी दुकान खोल ली और अपने दो भाइयों को भी रालेगन से बुला लिया।
छठे दशक के आसपास वह फौज में शामिल हो गए। उनकी पहली पोस्टिंग बतौर ड्राइवर पंजाब में हुई। यहीं पाकिस्तानी हमले में वह मौत को धता बता कर बचे थे। इसी दौरान नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से उन्होंने विवेकानंद की एक बुकलेट 'कॉल टु दि यूथ फॉर नेशन' खरीदी और उसको पढ़ने के बाद उन्होंने अपनी जिंदगी समाज को समर्पित कर दी। उन्होंने गांधी और विनोबा को भी पढ़ा। 1970 में उन्होंने आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प किया। मुम्बई पोस्टिंग के दौरान वह अपने गांव रालेगन आते-जाते रहे। चट्टान पर बैठकर गांव को सुधारने की बात सोचते रहते।
जम्मू पोस्टिंग के दौरान 15 साल फौज में पूरे होने पर 1975 में उन्होंने वीआरएस ले लिया और गांव में आकर डट गए। उन्होंने गांव की तस्वीर ही बदल दी। उन्होंने अपनी ज़मीन बच्चों के हॉस्टल के लिए दान कर दी। आज उनकी पेंशन का सारा पैसा गांव के विकास में खर्च होता है। वह गांव के मंदिर में रहते हैं और हॉस्टल में रहने वाले बच्चों के लिए बनने वाला खाना ही खाते हैं। आज गांव का हर शख्स आत्मनिर्भर है। आस-पड़ोस के गांवों के लिए भी यहां से चारा, दूध आदि जाता है। गांव में एक तरह का राम राज है। गांव में तो उन्होंने राम राज स्थापित कर दिया है। अब वह अपने दल-बल के साथ देश में रामराज की स्थापना की मुहिम में निकले हैं : भ्रष्टाचार रहित भारत।15 जून 1938 को महाराष्ट्र के अहमद नगर के भिंगर कस्बे में जन्मे अन्ना का बचपन बहुत गरीबी में गुजरा। पिता मजदूर थे। दादा फौज में। दादा की पोस्टिंग भिंगनगर में थी। वैसे अन्ना के पुरखों का गांव अहमद नगर जिले में ही स्थित रालेगन सिद्धि में था। दादा की मौत के सात साल बाद अन्ना का परिवार रालेगन आ गया। अन्ना के छह भाई हैं। परिवार में तंगी का आलम देखकर अन्ना की बुआ उन्हें मुम्बई ले गईं। वहां उन्होंने सातवीं तक पढ़ाई की। परिवार पर कष्टों का बोझ देखकर वह दादर स्टेशन के बाहर एक फूल बेचनेवाले की दुकान में 40 रुपये की पगार में काम करने लगे। इसके बाद उन्होंने फूलों की अपनी दुकान खोल ली और अपने दो भाइयों को भी रालेगन से बुला लिया।
छठे दशक के आसपास वह फौज में शामिल हो गए। उनकी पहली पोस्टिंग बतौर ड्राइवर पंजाब में हुई। यहीं पाकिस्तानी हमले में वह मौत को धता बता कर बचे थे। इसी दौरान नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से उन्होंने विवेकानंद की एक बुकलेट 'कॉल टु दि यूथ फॉर नेशन' खरीदी और उसको पढ़ने के बाद उन्होंने अपनी जिंदगी समाज को समर्पित कर दी। उन्होंने गांधी और विनोबा को भी पढ़ा। 1970 में उन्होंने आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प किया। मुम्बई पोस्टिंग के दौरान वह अपने गांव रालेगन आते-जाते रहे। चट्टान पर बैठकर गांव को सुधारने की बात सोचते रहते।
जम्मू पोस्टिंग के दौरान 15 साल फौज में पूरे होने पर 1975 में उन्होंने वीआरएस ले लिया और गांव में आकर डट गए। उन्होंने गांव की तस्वीर ही बदल दी। उन्होंने अपनी ज़मीन बच्चों के हॉस्टल के लिए दान कर दी। आज उनकी पेंशन का सारा पैसा गांव के विकास में खर्च होता है। वह गांव के मंदिर में रहते हैं और हॉस्टल में रहने वाले बच्चों के लिए बनने वाला खाना ही खाते हैं। आज गांव का हर शख्स आत्मनिर्भर है। आस-पड़ोस के गांवों के लिए भी यहां से चारा, दूध आदि जाता है। गांव में एक तरह का राम राज है। गांव में तो उन्होंने राम राज स्थापित कर दिया है। अब वह अपने दल-बल के साथ देश में रामराज की स्थापना की मुहिम में निकले हैं : भ्रष्टाचार रहित भारत।15 जून 1938 को महाराष्ट्र के अहमद नगर के भिंगर कस्बे में जन्मे अन्ना का बचपन बहुत गरीबी में गुजरा। पिता मजदूर थे। दादा फौज में। दादा की पोस्टिंग भिंगनगर में थी। वैसे अन्ना के पुरखों का गांव अहमद नगर जिले में ही स्थित रालेगन सिद्धि में था। दादा की मौत के सात साल बाद अन्ना का परिवार रालेगन आ गया। अन्ना के छह भाई हैं। परिवार में तंगी का आलम देखकर अन्ना की बुआ उन्हें मुम्बई ले गईं। वहां उन्होंने सातवीं तक पढ़ाई की। परिवार पर कष्टों का बोझ देखकर वह दादर स्टेशन के बाहर एक फूल बेचनेवाले की दुकान में 40 रुपये की पगार में काम करने लगे। इसके बाद उन्होंने फूलों की अपनी दुकान खोल ली और अपने दो भाइयों को भी रालेगन से बुला लिया।
छठे दशक के आसपास वह फौज में शामिल हो गए। उनकी पहली पोस्टिंग बतौर ड्राइवर पंजाब में हुई। यहीं पाकिस्तानी हमले में वह मौत को धता बता कर बचे थे। इसी दौरान नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से उन्होंने विवेकानंद की एक बुकलेट 'कॉल टु दि यूथ फॉर नेशन' खरीदी और उसको पढ़ने के बाद उन्होंने अपनी जिंदगी समाज को समर्पित कर दी। उन्होंने गांधी और विनोबा को भी पढ़ा। 1970 में उन्होंने आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प किया। मुम्बई पोस्टिंग के दौरान वह अपने गांव रालेगन आते-जाते रहे। चट्टान पर बैठकर गांव को सुधारने की बात सोचते रहते।
जम्मू पोस्टिंग के दौरान 15 साल फौज में पूरे होने पर 1975 में उन्होंने वीआरएस ले लिया और गांव में आकर डट गए। उन्होंने गांव की तस्वीर ही बदल दी। उन्होंने अपनी ज़मीन बच्चों के हॉस्टल के लिए दान कर दी। आज उनकी पेंशन का सारा पैसा गांव के विकास में खर्च होता है। वह गांव के मंदिर में रहते हैं और हॉस्टल में रहने वाले बच्चों के लिए बनने वाला खाना ही खाते हैं। आज गांव का हर शख्स आत्मनिर्भर है। आस-पड़ोस के गांवों के लिए भी यहां से चारा, दूध आदि जाता है। गांव में एक तरह का राम राज है। गांव में तो उन्होंने राम राज स्थापित कर दिया है। अब वह अपने दल-बल के साथ देश में रामराज की स्थापना की मुहिम में निकले हैं : भ्रष्टाचार रहित भारत।

पदम् भूषण अवार्ड (१९९२)
पदम श्री अवार्ड (११९०)
इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्षमित्र पुरस्कार (१९८६)
महाराष्ट्र सरकार का कृषि भूषण पुरस्कार (१९८९)
यंग इंडिया अवार्ड ()
मैन ऑफ़ द ईयर अवार्ड (१९८८)
पॉल मित्तल नेशनल अवार्ड (२०००)
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंटेग्रीटि अवार्ड (२००३)
विवेकानंद सेवा पुरुस्कार (१९९६)
शिरोमणि अवार्ड (१९९७)
महावीर पुरुस्कार (१९९७)
दिवालीबेन मेहता अवार्ड (१९९९)
केयर इन्टरनेशनल (१९९८)
BASAVSHRI PRASHASTI 2000 AWARD (२०००)
GIANTS INTERNATIONAL AWARD (२०००)
नेशनलइंटरग्रेसन अवार्ड (१९९९)
VISHWA-VATSALYA & SANTBAL AWARD ()
जनसेवा अवार्ड (१९९९)
ROTARY INTERNATIONAL MANAV SEVA PURASKAR (१९९८)
विश्व बैंक का 'जित गिल स्मारक पुरस्कार' (२००८)


REALLY HE IS

ANNA CRORE

Monday, May 9, 2011



Rural India is now a changed place!
50% of the GDP now comes from rural India. Also, nearly 50 % of the rich and very rich are rural households.



Rural India is now a radically changed place!
The mobile revolution is really the most radical instrument of change. Mobile phone usage has affected every type of persons and occupations. So too the use of two wheelers and other transport. In place of bullock carts and bullocks-drawn ploughs there are tractors and tractor usage has also affected the old occupations and the prejudices to change for modernisation. Almost all the new generation Dalit youth are now tractor drivers and this has changed their outlook, their prestige.